मेरी मासूमियत Poem by Sanjeet Pathak

मेरी मासूमियत

वक़्त फिसल गया मुट्ठी से,
वो दूर मुझसे जाता रहा.
काश! रोक पाता उसे,
मैं रोता रहा, वो मुस्कुराता रहा...
मैं जीता रहा बस उसके लिए,
और वो मुझे आजमाता रहा.
गुजर गयी उम्र रूठने-मनाने में,
वो रूठता रहा, मैं मनाता रहा.
मेरी मासूमियत का सबब ये रहा,
वो जला कर मुझे अपनी ठण्ड मिटाता रहा.
‘आशिक' हूँ, जलना तो यूँ भी है,
जल कर भी ‘पाठक' गुनगुनाता रहा...
कल भी तेरा था, कल भी तेरा हूँ,
बस वक़्त आता-जाता रहा.

Tuesday, April 26, 2016
Topic(s) of this poem: heartbreak,love
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