अनचाहे जब मिल ही गए हैं,
कर लेते हैं कुछ बात प्रिये.
अपना हाल सुनाओ तुम,
यहाँ बद-से-बदतर हालात प्रिये.
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जब कोई चोट तुम्हे पहुंचाता होगा,
कुछ याद तुम्हे भी आता होगा,
सुना है यादों से लगाव तुम्हे है,
कभी मेरे अन्दर तो देख,
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जो मेरी ख़ामोशी तुम पढ़ पाती,
तुम दूर कहाँ तब रह पाती...
कितना कुछ तुमसे कहना था,
जो मेरी ख़ामोशी तुम पढ़ पाती,
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तू मेरी और बस मेरी है,
काश ये तुझको जता पाता,
मेरे दो जहाँ तुझसे हैं,
काश ये तुझको बता पाता.
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दौलत यहाँ सब कुछ नहीं होती,
सुना है ऊँची दीवारों वाले भी रोते बहुत हैं.
जिंदगी जीने की जद्दोजहद तो देखो,
जिद ने जरूरतों से समझौता कर लिया.
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नाम तो अपना तब भी नहीं था,
जब शरीफों में गिनती थी,
अब ‘आशिकी' पाली है साहिब तो,
कम से कम बदनाम तो हुए.
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बेशक तू बिकती होगी,
तुझमे अब वो बात कहाँ...
प्यार तुझसे अब भी है,
खरीदूँ ये औकात कहाँ...
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मंदिर देखा, मस्जिद देखा,
राम, इशा, रहमान ना देखा,
इंसानों की इस बस्ती में,
सदियों से कोई इन्सान न देखा.
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मैं भी सिसकी लेता हूँ, और
मेरा दिल भी रोता है,
मर्द हूँ तो क्या हुआ,
इंसान तो हूँ...
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मुझको चंद और साँसे बक्श ऐ खुदा,
सुना है उसे मेरे चाहत का खबर हो चला है.
की तेरे जन्नत की चाह नहीं मुझको,
मुझे उस जमीं पर रख,
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वक़्त फिसल गया मुट्ठी से,
वो दूर मुझसे जाता रहा.
काश! रोक पाता उसे,
मैं रोता रहा, वो मुस्कुराता रहा...
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मैं आया नहीं, बुलाया गया हूँ.
इन्कलाब नहीं हूँ, जलाया गया हूँ.
यूँ ही नहीं बैठा इस मरघट में....
हजारों दफा दफनाया गया हूँ.
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पूछते थे हमेशा मुझसे,
वो शक्शियत अपनी,
जो आज आइना दिखाया,
तो साहिब बुरा मान गए.
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सुना था की की वफ़ा मिलती नहीं
आसानी से अब यहाँ.
सोचा, चलो खोज आते हैं,
शायद मिल जाये कहीं मुझे ही.
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कर लेते हैं कुछ बात प्रिये
अनचाहे जब मिल ही गए हैं,
कर लेते हैं कुछ बात प्रिये.
अपना हाल सुनाओ तुम,
यहाँ बद-से-बदतर हालात प्रिये.
कैसे तेरे दिन कटते हैं,
कैसे कटती है रात प्रिये?
मैं तो पल-पल मरता हूँ,
कैसे तेरे लम्हात प्रिये?
तेरा बोर्ड जाल भी तेरे
तेरे मोहरे चाल भी तेरे
मैं भूल गया औकात प्रिये.
चलो खेलें फिर खेल वही,
शह तेरा मेरी मात प्रिये,
सुना है बाज़ारों में बिकते हैं, अब
किलो के दर जज़्बात प्रिये.