मैं आया नहीं बुलाया गया हूँ Poem by Sanjeet Pathak

मैं आया नहीं बुलाया गया हूँ

मैं आया नहीं, बुलाया गया हूँ.
इन्कलाब नहीं हूँ, जलाया गया हूँ.
यूँ ही नहीं बैठा इस मरघट में....
हजारों दफा दफनाया गया हूँ.


झुलाया गया हूँ, झुकाया गया हूँ.
नहीं थी जरुरत, तो मिटाया गया हूँ.
हुआ फक्र मुझ पर तो महफ़िल में परोसा,
जो आई हया तो छुपाया गया हूँ.


जो चाहा सिमटना साए में खुद के,
तो उसी के पीछे दौड़ाया गया हूँ.
कभी था चाहा सिसक कर जो रोना,
तभी गुदगुदा कर हसाया गया हूँ.


गर माँगा हिसाब कभी मेरी खता का,
हजारों हीलों से बरगलाया गया हूँ.
जिनको कभी था पलकों पर रखा,
उन्ही द्वारा शुलों पर बिठाया गया हूँ.


मैं मूरत के मंदिर में बंधी हुई घंटी,
हर-एक हाथो से बजाया गया हूँ.
मेरे बजने से ये पत्थर हैं रीझते,
यही बोल कर मैं रिझाया गया हूँ.

Tuesday, April 26, 2016
Topic(s) of this poem: love,love and art
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