साहिब बुरा मान गए Poem by Sanjeet Pathak

साहिब बुरा मान गए

पूछते थे हमेशा मुझसे,
वो शक्शियत अपनी,
जो आज आइना दिखाया,
तो साहिब बुरा मान गए.
सोच उनका था फ़कत
वो ही मेरी मंजिल,
जो निशाना अपना दिखाया,
साहिब बुरा मान गए.
दावा रहा उनका की
उनके मन में रहते थे,
आज ठिकाना अपना दिखाया,
तो साहिब बुरा मान गए.
शिकायत रही उनकी
बड़ा बेअदब मैं था...
जो अदब का पैमाना दिखाया,
साहिब बुरा मान गए.
वो करते रहे नुमाइश
अपनी अहद-ए-वफ़ा की,
जो अफ़साना अपना सुनाया,
तो साहिब बुरा मान गए.

Tuesday, April 26, 2016
Topic(s) of this poem: heartbreak,love
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