मैं सिगरेट हूँ Poem by NADIR HASNAIN

मैं सिगरेट हूँ

पास में आओना भाई मैं तो तेरा मेट हूँ
कैंसर व टी.बी के लाने का बेहतर गेट हूँ
चाहने वाले हमारे हर जगह मिलजाएंगे
मैं कोई दूजा नहीं सिगरेट हूँ सिगरेट हूँ

मीठी छुरी से किसी क़ीमत में हूँ मैं कम नहीं
जल के होता राख हूँ मैं फिर भी कोई ग़म नहीं
धिरे धीरे हर किसी को मैं बना दूंगा मरीज़
जानते मुझको नहीं सिगरेट हूँ सिगरेट हूँ

जो जलाता है हमें क्यों उसे मैं छोड़ दूँ
है अगर नाता पुराना किस तरह मैं तोड़ दूँ
वह जलाता है मुझे, मैं जलाता फेफड़ा
छोड़ता हूँ लेकर बदला यारो मैं सिगरेट हूँ

मुझसे जो धूंवां निकलता जान लेवा ज़हर है
हर जगह क़ाबिज़ हूँ मैं वह गांव हो या शहर है
कैंसर व टी.बी सारे आलम में फैलाऊंगा
है यही मक़सद मेरा सिगरेट हूँ सिगरेट हूँ

जीना है आराम से गर ज़िन्दगी से प्यार है
ना लगाओ लब से मुझको तेरा बेड़ा पार है
जाओ तुम नादिर बता दो हर किसी इंसान से
दूर हमसे ही रहे सिगरेट हूँ सिगरेट हूँ

By: नादिर हसनैन

Wednesday, February 8, 2017
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