मैं अकेला हूँ मुझकोतू "माँ " चाहिए Poem by NADIR HASNAIN

मैं अकेला हूँ मुझकोतू "माँ " चाहिए

Rating: 5.0

मैं दुआओं का तेरे तलबगार हूँ
तेरी फ़ुर्क़त के ग़म में मैं बेज़ार हूँ
किस्से अपनी सुनाऊँ दिल-ए-दास्ताँ
तुझसा ग़मख़ार मेरा ना है राज़दाँ
थपथपी हाथों की लोरियाँ चाहिए
मैं अकेला हूँ मुझको तू माँ चाहिए

ग़ैब से होती थी तुझको पल में ख़बर
जब भी होता परेशां ये लख़त-ए-जिगर
हर तरफ़ मतलबी ज़रपरस्तों की भीड़
तुझसा बेलौस मोहसिन ना है दस्तगीर
सींचने को चमन बाग़बाँ चाहिए
मैं अकेला हूँ मुझकोतू "माँ " चाहिए

मेरे दिल में कसक बेकली रहगई
कुछ ना बोली तू बस देखती रहगई
वह ख़लिश रात दिन करती बेचैन है
मेरी नज़रों में वह टकटकी नैन है
ऐश-ओ-इशरत ना शाही मकाँ चाहिए
मैं अकेला हूँ मुझकोतू "माँ " चाहिए
✍️: नादिर हसनैन

Monday, July 6, 2020
Topic(s) of this poem: mother,mother and child ,sad
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 06 July 2020

माँ को समर्पित एक भावपूर्ण कविता. धन्यवाद.

1 0 Reply
Aarzoo Mehek 06 July 2020

A child's Heartfelt plea. Sensitive poem.

1 0 Reply
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