इश्क़ तुम्हीं से बस दिन रात मैं करता हूँ Poem by NADIR HASNAIN

इश्क़ तुम्हीं से बस दिन रात मैं करता हूँ

इश्क़ तुम्हीं से बस दिन रात मैं करता हूँ
ना फ़िक्र किसी की है बस तुमपे मरता हूँ
दिल चाहता है मेरा हर बात को कह डालूं
कैसे कहूँ तुम से कहने से डरता हूँ

ये दुनियां सारी अब मुझे धूल सी लगती है
बना हूँ मैं भंवरा तू फूल सी लगती है
मेरा शीशे सा है दिल कहीं टूट ना ये जाए
यह सोच कर मैं दिन रात आँहें भरता हूँ

मेरे लिए ही तू बन कर आयी है
खुशयों का मौसम भी साथ में लाई है
मेरा दिल रौशन है ये तेरे दिया से ही
बुझा ना दे कोई इस बात से डरता हूँ

दिल अपना गँवा बैठा देखा है तुझे जब से
तुझको भी मुहब्बत हो करता हूँ दुआ रब से
तेरा चाँद सा चेहरा और हर अदा निराली है
क़सम ख़ुदा की मैं इसी बात पे मरता हूँ

मेरी जान मुहब्बत से इनकार नहीं करना
खुशयों से भरे दिल को ग़मख़ार नहीं करना
दीवाना हूँ मैं पागल कहदुंगा ज़माने से
आशिक़ हूँ मैं तेरा तुझे प्यार मैं करता हूँ

By: नादिर हसनैन

Monday, February 13, 2017
Topic(s) of this poem: love
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