हम भी तो इंसान ही थे Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

हम भी तो इंसान ही थे

हम भी तो इंसान ही थे

Tuesday, March 6,2018
9: 31 PM

हम भी तो इंसान ही थे

हम पर ही भारी पड़े
संगीन आरोप जड़े
आते ही लड़ पड़े
हमको रुलाके ही छोड़े।

रिश्ते को हम निभाना जानते है
और निभाते भी है
पर कौन जाने क्यों हम पर ही आफत आती है?
कहर बरसाके चली जाती है।

हमने आत्मसम्मान को नहीं छोड़ा
नाही किसी को बिना वजह छेड़ा
हम बस भूलते गए
वो जुल्मढाते गए।

रिश्तों को भी नज़र लग गई
बस एक कायमीकालिख लगा गइ
हमने फिर भी गीला नहीं किया
बस मन ही मन माफ़ कर दिया।

हम कोरिश्तों की दुहाई मत देना
हम को तो हे ही अपनाना
बनाया है जो आपको अपना
ना ही टूटने देंगे सपना।

हम ठहरे इंसानियात कामोहरा
सुनते गए ज़रा ज़रा
उफ़ नहीं किया जुबान से
हम भी तो इंसान ही थे।

हम भी तो इंसान ही थे
Tuesday, March 6, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 06 March 2018

ndira Sharma Lajawab 2 Manage Like · Reply · 6m

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 March 2018

welcome nilu jha

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 March 2018

हम ठहरे इंसानियात कामोहरा सुनते गए ज़रा ज़रा उफ़ नहीं किया जुबान से हम भी तो इंसान ही थे।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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