हैं कंवारी जिनकी लड़की उनसे जाकर पूछये Poem by NADIR HASNAIN

हैं कंवारी जिनकी लड़की उनसे जाकर पूछये

लड़कियों के आज रिश्तों से भरा अखबार है
पास में पैसा है जिसके उसका बेड़ा पार है
कर दिया बेटी की शादी जितने भी ज़रदार थे
उनका क्या होगा बताओ जिसको ज़र ना यार है

जल रही हैं लड़कियां हैं ख़ुदकशी ये कररहीं
कर रहे हम ग़लतियाँ हैं मगर वह मर रहीं
पैदा होने से क़ब्ल ही क़त्ल होती बच्चियां
इन मौत का तुम्हीं बताओ कौन ज़िम्मेदार है

डाक होने अब लगा है नौजवानों के लिए
बिक गए हम उनके हाथों मांग थी जितनी दिए
ऐसी शादी होही जाती है जहन्नुम की तरह
ख़ुश नहीं रह पाते हैं वह ना ही मिलता प्यार है

हैं कंवारी जिनकी लड़की उनसे जाकर पूछये
भाई तो होंगे किसी के? बाप बनकर सोचिये
आएगा ख़ुद ही समझ में जब बनेंगे ज़िम्मेदार
दस्तूर ये कैसी घिनौनी इस् जहां में यार है

क़सम सब मिलकर यहाँ पर नौजवान ये खाएंगे
मिलकर देंगे हम सजा ज़ुल्म जो भी ढायेंगे
मांग अब कुछ भी ना होगी ना तो नादिर ख़ुदकुशी
इसकी ख़ातिर देख लो हर नौजवां तैयार है

: नादिर हसनैन

हैं कंवारी जिनकी लड़की उनसे जाकर पूछये
Saturday, August 8, 2015
Topic(s) of this poem: human nature
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