ख़ाकी वर्दी वाले हैं हम ख़ाकी वर्दी वाले हैं Poem by NADIR HASNAIN

ख़ाकी वर्दी वाले हैं हम ख़ाकी वर्दी वाले हैं

ख़ाकी वर्दी वाले हैं हम ख़ाकी वर्दी वाले हैं
गांव शहर के रक्छक हैं इस देश के हम रखवाले हैं
ख़ाकी वर्दी वाले हैं हम...............


ईद दिवाली होली में भी करते हैं हम पहरेदारी
ख़ुशी निछावर करके अपनी अपना फ़र्ज़ निभाते हैं
ख़ाकी वर्दी वाले हैं हम...............


चोर उचक्का देशद्रोही ज़ालिम ज़ानी हर शैतान
हमारे इस क़ानून से देखो थर थर कांपे बेईमान

दिन रात मुशक़्क़त करते हैं हम आंधी हो या हो तूफ़ान
गुनहगार को सज़ा दिलाकर हम एहसास दिलाते हैं
ख़ाकी वर्दी वाले हैं हम...............


घर से दूर हैं घर वालों से बीवी बच्चे माँ से दूर
जवाँ होगई नन्हीं बिटिया रहते रहते हम से दूर

हर शिकवे हर गिले भुला कर लाडो फख्र से कहती है
मेरे अब्बा जान वतन पे अपनी जान लुटाते हैं
ख़ाकी वर्दी वाले हैं हम...............

तन मन धन हर ख़ुशी समर्पण करके आज सिपाही हूँ
बेटा बाप पति और चाचा आप सा ही एक भाई हूँ

बनों हमारी तीसरी आँखें आप हमारी ताक़त हो
आप सा ही दिल हममें भी है हम हमदर्दी वाले हैं
ख़ाकी वर्दी वाले हैं हम...............


: नादिर हसनैन

Friday, October 28, 2016
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