ज़िन्दगी ने कईं ग़म दिए
हँस के हमने सब ही सहे
मगर जो भी खुशियाँ हमको मिली
उसके हम ना हो सके
राहों में बस काँटे मिले
ऐसे ही मन्जि़ल तक हम चले
कोई अब क्या किसको कहे
जब कोई राज़दाँ ना मिले
जब टिमटिमाते तारों तले
कोई अपना कईं बरसों में मिले
बूँद ही बूँद अश्कों से गिरे
रात से दिन का हाल ना पूछो
किस तरह वो सहर से मिले
चन्द लम्हे बस मिलने को दिए
रात क्या क्या सहर से कहे
ज़ख़्म इतने हमको मिले
कि हम बस दर्द के ही हो गए
behad khubsuart...zindagi ne kai gahm diye...jitne vi mausam diye sab namm diye
A beautiful poem.............................................................
ज़ख़्म इतने हमको मिले कि हम बस दर्द के ही हो गए great written mam... liked it.... hearttouching
It reminded me an old song: Superb....10+++ Rahi Manva Dukh Ki Chinta Kyu Satati Hai Dukh Toh Apna Sathi Hai Sukh Hai Ek Chhanv Dhalti Aati Hai Jati Hai Dukh Toh Apna Sathi Hai Rahi Manva Dukh Ki Chinta Kyu Satati Hai Dukh Toh Apna Sathi Hai
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
ज़िंदगी के अलग अलग मरहले हमारे लिए क्या कुछ ले कर आते हैं, कोई नहीं जानता. जब दुःख की अटूट कड़ियाँ अपना कहर ढाती हैं तो जीना मुहाल हो जाता है. आपकी नज़्म बहुत अच्छी है. Thanks. ज़िन्दगी ने कईं ग़म दिए / राहों में बस काँटे मिले ज़ख़्म इतने हमको मिले / कि हम बस दर्द के ही हो गए