एक ओर बात कहकर देखूँ तो शायद पा लूँ तुझको Poem by Priya Guru

एक ओर बात कहकर देखूँ तो शायद पा लूँ तुझको

Rating: 5.0

समंदर सारा बह जाता है जब
एक बची बूँद पलकों में रह जाती है जब ।

दिल करता है एक याद छुं कर देखूँ
तो शायद पा लूँ तुझको ।

सुबह भी रात की ख़ामोशी टूटा करती है जब
उन ख्वाबो की असल भी छूटा करती है जब ।

एक जागती जलजली किरण आँखे मूँद लेती है
तेर हर बात सिरहाने रख बिस्तर से उठा जाता है जब ।

इस बेबस मजबूर किताब के कहने को
फिर से दिल करता है तुझसे एक बात कहने को

अरमान बिस्तर में लपेट छोड़ निकलता हूँ जब
फिर एक बार गली में याद कर लेता हूँ तब ।

यूं लगता है जैसे वक़्त के मजबूत कंधो पर
सब ख्वाब लेजाकर छोडूं तो शायद पा लूँ तुझको ।

एक ओर बात कहकर देखूँ तो शायद पा लूँ तुझको ।।

Thursday, December 8, 2016
Topic(s) of this poem: longing
COMMENTS OF THE POEM
Naila Rais 29 November 2018

So emotional poetry............10 U may like to read my poems too.. Naila

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success