ईमेल की रेलमपेल Poem by sumit jain

ईमेल की रेलमपेल

ये युग है डिजिटल का
ऑनलाइन है संसार
इन्टरनेट है मुल्क
ईमेल है एड्रेस हमारा
जोड़ दिया सब से
क्या उपलब्धि पाई.......

आया ईमेल निराला
मच गया कोहराम
बच्चे-युवा हुए दीवाने
हर कोई हुआ अचंभित
बदल गई जिंदंगी
मुश्किल हुई सहज
जिंदंगी को दिया नया सौगात
बन गया नया संसार………..

जिंदगी के मोड़ पे कई अजूबे देखे
ईमेल जैसा ना देखा
रेलमपेल है हजारो मेल की
भाती भाती के रंगों से सजाता
कभी लगता, मेलो का एक गुछा
कुछ को मानु अपना,
तो कुछ लगते पराये
ये करते बमबारी मेलो की
जाने-अनजाने पलो की याद दिलाता
तत्काल में पड़ लेता कुछ को
जाने क्यों में रखता समाल के
वा रे मेल की दुनिया वा
हम भी घिरे है इस माया जाल से
यही ही है ईमेल की रेलमपेल.........

ईमेल की रेलमपेल
Monday, December 19, 2016
Topic(s) of this poem: educational
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