जोश है जज़्बा कुछ करने का करके हम दिखलाएंगे
एक नन्हीं सी अभी कलि हैं कल हम गुल बनजाएंगे
माँ की ममता नाज़ करेगी फख्र करेगा देश
छू कर हम उस नीले गगन को देश रतन कहलाएंगे
राह में मुश्किल आएगी पर आगे बढ़ते जाना है
मरते दम तक हम सब को अपना फ़र्ज़ निभाना है
चावला, न्यूटन, कलाम या बापू सब ये एक दिन बच्चे थे
काम करेंगे हम भी ऐसा देखते सब राहजाएंगे
जोश है जज़्बा कुछ करने का...........................
मम्मी, पाप, दादी, नानी सबका दिल बहलाता हूँ
नन्हां मुन्ना राही हूँ पर मुस्तक़बिल कहलाता हूँ
इज़्ज़त शोहरत मिलती है बस पढ़े लिखे इंसानों को
हम बच्चे हैं घर की रौनक़ रौशन जग करजाएंगे
जोश है जज़्बा कुछ करने का...........................
पंछी हम आज़ाद वतन के फूल हैं ख़ुशबूदार चमन के
है संकल्प ये लक्छ्य हमारा चमकूँ गगन में बनकर तारा
मिटटी ये ज़रखेज़ है नादिर इसे न बंजर तुम समझो
सिंचाई तो करके देखो हरे भरे होजाएंगे
जोश है जज़्बा कुछ करने का...........................
By: नादिर हसनैन
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem