पूरे मन से Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

पूरे मन से

पूरे मन से

किताब ही सही
पर लिखना यही
कुछ अपनी यादे
कुछ पुराने वादे।

जीवन कभी दूभर हो जाता
और कभी खुशियोंकी बौछार कर देता
में थोड़ा गम महसूस करता
ओर फिर मस्ती में आ जाता।

इम्तेहान से कोई नहीं डरता
जान देकर कोई नहीं मरता
सबको भरोसा है अपने आप पर
नहीं कहते कभी मरते हुएको भी 'मर'

जीवन मेरा हो या तेरा
उगता है सबका सवेरा
सूरज रौशनी से अँधेरा दूर कर देता है
जीवन फिर से अपने आप धड़कने लगता है।

रहे हम सदा दूर
ये मारकाट हमें भेजता है सुदूर
हम नहीं देख सकते हमारे भाई बहनो को मरते
बस एक ही निश्चय कर लेते है जाते जाते।

ना डरेंगे मुसीबत से
करेंगे दूर उसे महोब्बत से
जियेंगे और जीने देंगे
सहकार पूरे मन से देंगे

पूरे मन से
Sunday, October 8, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 08 October 2017

ना डरेंगे मुसीबत से करेंगे दूर उसे महोब्बत से जियेंगे और जीने देंगे सहकार पूरे मन से देंगे

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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