कुछ छूट तो नहीं गया? Poem by Dr. Yogesh Sharma

कुछ छूट तो नहीं गया?

Rating: 5.0

छ: महीने के जिगर के टुकडे को,
छोड् कर, आया के पास;
नौकरी पर भागते हुए;
रोक कर, माँ को, आया ने पूछा: ...
"कुछ छूट तो नहीं गया? मेम साहब!
पेपर, फाईल, चाबी, पर्स, टिफिन, पानी,
सब ले लिया ना...? "
ढ्बढबाई आंखों से आंसुओं को पौंछ्ते,
अब वो अभागी मां, क्या कहे...
पेट के लिये, भागते भागते...
घर को खुशहाल बनाने की भागम-भाग में,
वो जिसके लिये भाग रही है,
वही अभागा, वही रोता हुआ,
पीछे छूट गया...!

विदाई के समय,
बेटी को विदा करते हुए,
पंडाल से सब मेहमानों के जाने के बाद,
मां ने पिछे से आवाज लगाई, ...
"सुनो जी, कुछ छूट तो नहीं गया...?
एक बार फिर ठीक से देख लेना...! "
ढ्बढबाई आंखों से आंसुओं को पौंछ्ते,
पिता कहे तो क्या कहे; ...
दुबारा देखने गया,
तो बिटिया के पलंग के पास,
कुछ मुर्झाये पड़े फूल मुस्कराये...
और बोले: ...
बरखुरदार अब देखने के लिये,
क्या बचा है?
सब कुछ तो चला गया...।
बरसों तक जो एक आवाज पर,
भागी चली आती थी,
वो आज एक नये घर् की,
आवाज बन गयी।
पीछे छूट गया वो नाम और
जुड् गया एक और नाम,
उस नाम के साथ....।
बरसों गर्व से जो लगता था कुलनाम,
वो नाम भी तो पीछे छूट गया अब...
"देखा आपने क्या...?
कुछ पीछे छूट तो नहीं गया? "
पत्नी के इस सवाल पर ढ्बढबाई आंखों से,
आंसुओं को पौंछ्ते, पिता बुदबुदाया...
छूटने के लिये बचा ही क्या है अब?
सब कुछ तो चला गया...।

बड़ी हसरतों के साथ,
बेटे को पढाने के बाद,
विदेश भेजा था कुछ कमाने के लिये,
पर वह तो वहीं बस कर खो गया।
पोते के जन्म पर, बड़े अनुरोध पर,
एक माह का वीसा बनवाया।
वापस आते हुए बेटे ने पूछा...
"सब कुछ ध्यान से रख लिया पिताजी...?
कुछ छूट तो नहीं गया...? "
अपने पोते को आखिरी बार देख्कर,
बूढे माता-पिता बुदबुदाये,
सब कुछ तो यहीं छूट गया...
अब छूटने को बस खाली घर ही तो
है तो हमारे पास...!

रिटायरमेंट की शाम
विदाई देते छात्रों ने मास्टर जी से पूछा…
"चेक कर लें गुरु जी...!
कुछ छूट तो नहीं गया...? "
थोड़ा लंबा सांस लिया, गुरु जी ने...
और बोले कि पूरा जीवन तो तुम्हारे साथ,
पढ्ते-पढ़ाते बीत गया, ..
और अब तुम ही छूट गये,
अब और छूटने को बचा ही क्या है...?

श्मशान से लौटते समय बेटे ने,
एक बार फिर से चेहरा घुमाया,
एक बार पीछे मुड़ कर देखने के लिए...
मां को चिता में जलते देखकर,
मन भर आया...
भागते हुए वापस गया,
मां के चेहरे की अंतिम झलक पाने के लिये
और अपने लिये,
मां की आंखों में प्यार देखने के लिये,
पर वहां सिर्फ लाल लपटें ही थीं।
पिता ने पूछा...
"कुछ छूट गया था क्या बेटा...? "
ढ्बढबाई आंखों से आंसुओं को पौंछ्ते,
बेटा बुदबुदाया...
नहीं कुछ भी नहीं छूटा...
और जो भी कुछ मां का छूट गया है...
अब सदा ही मेरे साथ रहेगा...!

रिटायरमेंट की आखिरी परेड में,
विदाई देते जवानों ने,
अपने कमांडर से ने पूछा…
"चेक कर लें सर...!
कुछ छूट तो नहीं गया...? "
कमांडर ने एक लंबा सांस लिया,
और बोला कि पूरा जीवन तो तुम्हारे साथ,
सरहदों की रक्षा करते-करते बिता दिया, , ..
अब सब तुम्हारे पास ही छोड़ कर जा रहा हूं...
इसे संभाल के रखना मेरे साथियों ।

कुछ छूट तो नहीं गया?
Wednesday, September 16, 2020
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
Sharad Bhatia 16 September 2020

जीवन का कटु सत्य आगे की चाहत मे पीछे छोड़ जाते कुछ खट्टे मीठे पल जो हमे बाद मे देते है अपनापन

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Rajnish Manga 16 September 2020

बहुत दिनों बाद इस प्रकार की एक मार्मिक कविता पढने को मिली जिसमें विभिन्न कालखंडों में जीवन के छूटते हुए बहुमूल्य क्षणों को पकड़ लेने या जकड़ लेने की तड़प नज़र आती है. धन्यवाद, मित्र.

0 0 Reply
Varsha M 16 September 2020

Bahut umda rachna palbhar me aapne chootne chutane ka bandhan boon diya aapne. Dhanyawad.

0 0 Reply
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