जय निठ्ल्ले Poem by Dr. Yogesh Sharma

जय निठ्ल्ले

Rating: 5.0

बैठे थे दो आज निठ्ल्ले,
खा रहे थे भुने छ्ल्ले,
सोच रहे थे जुमले-वूमले,
नाच रहे थे बल्ले-बल्ले।

पडे‌ थे रात में थल्ले-थल्ले,
सूत रहे थे मुफ्त के भल्ले,
खुशी से हो रहे पिल्ले-पिल्ले,
हवा से कर रहे लव रिले-डिले।

बना रहे थे हवाई किले,
झूम रहे थे हल्ले-हल्ले,
गरज रहे थे-भोले-भोले,
नाच रहे थे जय-बम भोले।
जय सुफी बाबा गुलछर्रे,
बने रहेंगे तेरे चेले निठल्ले।

जय निठ्ल्ले
Wednesday, September 16, 2020
Topic(s) of this poem: political humor
COMMENTS OF THE POEM
Sharad Bhatia 16 September 2020

बहुत बेहतरीन रचना नेता जी पर एक बेहतरीन व्यंग आभार आपका बहुत बहुत

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Rajnish Manga 16 September 2020

बहुत रोचक कविता व आज की राजनीति पर सुंदर कटाक्ष. धन्यवाद.

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Varsha M 16 September 2020

Beautiful poetic humour. Thank-you.

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