मोरे अपराध सों भयोभारी Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

मोरे अपराध सों भयोभारी

मोरे अपराध सों भयोभारी दुख तोहि,
नहिं जानत प्यारे, , तुम किते गयो हौं।
दरश देहु मोहि, लीजिये अपनाय नेकु,
तुम्हें मनायबे में असमरथ भयो हौ ।
तोर तन मन सुन्दर, सुकुमार शुचि,
मन महँ करुणा प्रेम आसव भर्यो हौं।
छाड़ि देहु मान, सामने आऊ भगवान,
'नवीन' अब जात नहिं, विरह सह्यो हौं।।

Monday, March 20, 2017
Topic(s) of this poem: love
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