गुफ़्तुगू करले तू आ मेरे तू पास आ Poem by NADIR HASNAIN

गुफ़्तुगू करले तू आ मेरे तू पास आ

गुफ़्तुगू करले तू आ मेरे तू पास आ
तन्हां हूँ मैं तेरे बिना मुझको यूँ अब ना सता
तू साज़ है परवाज़ है, मेरी ज़िन्दगी का राज़ है
गाता रहूँ वह गीत है क्यों होगई पल में खफा

मेरी ज़िन्दगी मेरी बंदगी तूही जोनूं तू हौसला
मेरा इश्क तेरी सल्तनत आदिल तूही कर फैसला
तेरी जुस्तोजु तेरी आरज़ू जीने ना दे आ रू बरु
साहिल तुहि सहरा है तू जी ना सकूँ होकर जुड़ा
नादान था अनजान था दे दे मुझे जो हो सजा
दिल तोड़ कर मुंह मोड़ कर जाऊं तो मैं जाऊं कहाँ

जल बिना तड़पे है माहि इश्क़ वह तंदूर है
कर कफ़न तैयार मेरी रूह तन से दूर है
मेरा हमदम मेरा साथी मेरा हर मुश्किल कुशा
आज़माइश कररहा है क्यों मेरा मुझ से खुदा

मेरी दास्ताँ मेरी आरज़ू मेरी ज़िन्दगी तुहि आबरू
जाने ग़ज़ल मेरी शायरी एहसास ए दिल धड़कन है तू
मेरा हाल ए दिल सुन बेखबर बेचैन हूँ मैं किस क़दर
अब्रे सियाह ढल गया तुझे देख कर मेरी माहे रू

By: नादिर हसनैन

Tuesday, March 21, 2017
Topic(s) of this poem: love
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