एक एहसास तुम्हारा- २ Poem by abhilasha bhatt

एक एहसास तुम्हारा- २

Rating: 5.0

कितने अरसों से हम नहीं मिले
और अब तो यूँ लगता है
कि अब हम कभी मिलेंगे भी नहीं
जैसे नदी के दो किनारे
जो ना कभी मिलते हैं
ना ही मिलते हुए किसी छोर पर नज़र आते हैं
मुझको तो याद हो तुम
उसी पुरानी याद की तरह
जिसका एहसास मिट्टी पर पड़ती
बारिश की बूँदों की सौंधी खुशबू की तरह होता है
सादगी के लिबास में लिपटी हुई
बेलौस ख़ामोशी में बसी

Thursday, March 30, 2017
Topic(s) of this poem: emotions,love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 04 April 2017

कैसी सुन्दर किन्तु आहत करने वाली कल्पना है मिलन की नाउम्मीदी जैसे नदी के दो किनारों का रिश्ता. लेकिन वह याद भी कितनी सुखद है जिसका एहसास मिट्टी पर पड़ती.... बारिश की बूँदों की सौंधी खुशबू की तरह होता है. कमाल का चित्रण है, अभिलाषा जी.

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