इंसान के ख़ून की क़ीमत जब पानी से कम होजाएगी Poem by NADIR HASNAIN

इंसान के ख़ून की क़ीमत जब पानी से कम होजाएगी

इंसान के ख़ून की क़ीमत जब पानी से कम होजाएगी
मक़तूल को क़ातिल कह कर जब इंसाफ़ नहीं कीजाएगी

जब हरसू हर चौराहे पर वहशत का परचम लहरेगा
जब बेबस और लाचारों पर ज़ालिम का लश्कर ठहरेगा

जब माँ, बहनों और बेटी की इज़्ज़त से खेलाजाएगा
अदल अदालत आदिल जब ज़ुल्मत का राग सुनाएगा

तब मुंसिफ ग़ैबी आएगा और क़हर वबाई ढाएगा
अंगारे गगन से बरसेंगे और धरती थर थर कांपे गी
इंसान के ख़ून की क़ीमत जब.....

जब मेहनतकश मज़दूरों को मज़दूरी मिल ना पाएगी
जब खेती करने वालों की फसलें भी लूटी जाएगी

दो वक़्त की रोटी की ख़ातिर जब बूढ़े बच्चे तड़पेंगे
पढ़े लिखे हर नौजवान जब रोज़गार को तरसेंगे

जब छोटे छोटे व्यापारी पर बंदिश बढ़ती जाएगी
जब बड़े बड़े उद्योगपति की क़दमें चूमी जाएगी

तब मुंसिफ ग़ैबी आएगा और क़हर वबाई ढाएगा
अंगारे गगन से बरसेंगे और धरती थर थर कांपे गी
इंसान के ख़ून की क़ीमत जब.....

फ़िरऔन बनेगा हाकिम जब मूसा भी ज़मीं पर आएंगे
रावण की लंका ढाने को धरती पर राम पधारेंगे

जब धर्म के ढोंगी सौदागर बाज़ारू भक्त बनाएंगे
जब मज़हब ज़ात पर हो आघात और रक्त बहाए जाएंगे

जब हरसू ख़ौफ़ - दहशत का माहौल बनाया जाएगा
जब सभ्य समाज में ज़हरीला फ़रमान सुनाया जाएगा

तब मुंसिफ ग़ैबी आएगा और क़हर वबाई ढाएगा
अंगारे गगन से बरसेंगे और धरती थर थर कांपे गी
इंसान के ख़ून की क़ीमत जब.....

✍️@नादिर हसनैन

Monday, October 5, 2020
Topic(s) of this poem: injustice,sadness,unjustifiable
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