ना मेघों से बरसना
ना नभ से बरसना
ना सावन में
ना भादो में बरसना
ना दुख में
ना उन्माद में बरसना
ना तीज पे
ना त्योहार पे बरसना
ना दिन में
ना काली रात में बरसना
ना तेज बरसना
ना थम के बरसना
ना नदी पे
ना रेत पे बरसना
जब राह देख कर राही की
नैन पत्थर हो जाएँ
ओ बरखा,
तब तू झमाझम
इन नैनों से जम के बरसना
***
Bahut bahut haseen kavita. Barsha ko aasuoon as joodna atti uttam. Sabdoon ka laey bahut behatreen. Aabhar
बेहतरीन कविता एक बेहतरीन कवयित्री के द्वारा बहुत दुख हैं इन आँखों में बह जाने दो बन के बरसा आभार आपका जो आपने इतनी बेहतरीन रचना से हम सबको मंत्र मुग्ध कर दिया 100+
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बारिश कब हमारी फरियाद सुनती है, इसे अपनी आंखों से गिरने दें और दर्द से राहत Hone de. Bahut khoob, I agree with Shri.Rajnishji's comments.