काली राजधानी Poem by Dr. Yogesh Sharma

काली राजधानी

सीने मे घुटन, आंखों में गुबार सा क्यूं है,
आज इस महानगर में हर इंसान सहमा सा क्यूं है?
खांसता हर शख्स पूछ्ता, यहां धुंआं पराली का क्यूं है,
पर फिर दिल्ली से आगरा-चंढीगढ साफ सा क्यूं है?
सेक्युलर तमाशे-बाज पूछ्ते, धुंआं दिवाली पर क्यूं है,
दिल्ली तो काली पर लाहौर स्याह काला क्यूं है?
वहां पटाखे और उनको फोड़्ने वाले गायब क्यूं हैं,
हिंदु और सिख के दीदार के लिये तरसते क्यूं हैं?
वहां तो सिर्फ अज़ान का शोर ही क्यूं हैं,
शोर मचाने वाले मदारी अपनी नाकामी पर चुप क्यूं हैं?
दिल्ली की सड़्कौं पर अवैध कब्जे क्यूं हैं,
और पूछ्रते चारों तरफ जाम का धुंआं क्यूं हैं?
प्यासी मिट्टी बिना बाधों के क्यूं है,
फिर पूछ्ते धूल की आंधी क्यूं है?
यमुना खादर मफिया के कब्जे में क्यूं है,
दिल्ली देशी पेड़ों से खाली क्यूं है?
हर इंच ज़मी जाहिलों से अटी क्यूं है,
और पूछ्ते हैं, सीने मे घुटन, आंखों में गुबार क्यूं है? ,

काली राजधानी
Friday, November 29, 2019
Topic(s) of this poem: pollution
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