माटी Poem by C. P. Sharma

माटी

माटी की माया
माटी की काया
माटी में रंग भरे
माटी से खेले

माटी के घर
माटी पकाये
माटी परोसे
माटी के सिवा
नहीं कुछ भी है
जी ले ये जीवन
माटी भरोसे

माटी जब
माटी में मिल जाए
तो पुरोहित फिर से
माटी की मूरत बनाये
जब मूरत, ब्रह्माण्ड पुरोहित को न पूछे
तो वो फिर उस माटी को मुड़ मुड़ यों रुंधे
नित उस माटी की नव नूतन मूरत बनाये

माटी
Tuesday, May 16, 2017
Topic(s) of this poem: illusion,life and death,soil
COMMENTS OF THE POEM
Me Poet Yeps Poet 17 May 2017

simple sand to sand oh poetry man ur also dust ash

2 0 Reply
Rajnish Manga 16 May 2017

जीवन की आधारभूत सच्चाईयों पर एक आध्यात्मिक दृष्टि. बहुत सुंदर. धन्यवाद, शर्मा जी.

2 0 Reply
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C. P. Sharma

C. P. Sharma

Bissau, Rajasthan
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