मै हूँ तो ये बहारें हैं
फूलों की शोख़ियाँ हैं
गुलिस्ताँ हैं
मै हूँ तो ये नज़ारें हैं
आकाश में उड़ाते
पक्षियों की कतारें हैं
इंद्रधनुषीय रंग हैं
हवाओं में सुगंध हैं
संसार है
सम्बन्ध हैं।
मै हूँ तो
चाँद सूरज हैं
सितारें हैं
झिलमिलाता नील गगन
कैलाश है
कलरव करती गंगा है
सागर है
किनारे हैं।
जब मै न रहूँ
ये सब
मुझ में ही सिमिट जाए
मै वो हूँ
अदृश्य
अविनाशी
रंगहीन
गन्धहीन
रसहीन।
मै शून्य हूँ
अपना मूल्य न होने पे भी
मूल्यों का मूल हूँ
जिस के साथ लग जाऊं
उसका मूल्यवर्धन कर दूँ।
मै प्राण हूँ
जन्मदाता
पालन कर्त्ता
और संघार कर्ता हूँ।
अजन्मा होते हुए भी
जन्म लेता हूँ
जन्म ले के भी
अमर हूँ।
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एक बेहतरीन दार्शनिक अभिव्यक्ति. शून्य से शुरू करके कविता जीवन के शाश्वत सत्यों तक पहुँचती है. आपका धन्यवाद.