कोटि कोटि प्रणाम Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कोटि कोटि प्रणाम

कोटि कोटि प्रणाम

गर्व होना ही चाहिए
अपने भाग्यपर विश्वास करना चाहिए
कितने जन्म के बाद उच्च कुल मिला है
"हमारी विरासत है" हमें मुल्य समझना चाहिए।

गर्व भी करो
और जतन भी करो
दान करो और पुण्य करो
सब मन में रखो और दिखावा न करो।

अहिंसा के हम पुजारी
यही है विरासत हमारी
हम मरने वाले को 'तू मर' ऐसा कभी नहीं कहते
बस उसके लिए स्वर्ग की कामना ही करते है।

हम कर्म में विश्वास रखनेवाले है
अपना चारित्र्य ऊंचा और श्रेष्ठ कैसे रहे वो देखते है
किसीकी देखादेखी नहीं करते
एक दुसरे की इज्जत करते।

नवकार हमारा महामुला मंत्र
हम नहीं समझते और कोई तंत्र
जीवन मिला है तो उसे सार्थक करेंगे
जिन है तो जिनशाशन का जयजयकार करेंगे।

हमारी तपोवन भूमि
करते है नमन और कहते है नमामि
सदा परदुख के लिए नमो जिणाणम
हमरे जैनबंधुओं को कोटि कोटि प्रणाम।

कोटि कोटि प्रणाम
Saturday, June 10, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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हमारी तपोवन भूमि करते है नमन और कहते है नमामि सदा परदुख के लिए नमो जिणाणम हमरे जैनबंधुओं को कोटि कोटि प्रणाम।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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