नजर के सामने Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नजर के सामने

नजर के सामने

गरीब तो हो
पर दिल की धनी हो
मन की आमिर हो
किसी कसबे की मीर हो।

आईना जैसी साफ़ हो
किसी के भी दिल का मेल साफ़ कर सकती हो
अपने आपमे एक उझाला हो
अँधेरे को मिटाने का जरिया हो।

हुस्न का दरिया हो
दिल दरियादिल हो
मन में इंसानो के प्रति संवेदनशील भाव हो
ऐसे लोग ही हमारे जीवन का हिस्सा हो।

बेहतर है
हम सदांतर कार्यरत रहे
कदर करे
और रुतबे से रहे।

हमें मंजूर है
आपमें हुन्नर है
एक संगदिल इंसान ही दोस्तीका हाथ बढ़ा सकता है
अपने आपमें उच्च भावना का परिचय दे सकता है।

जीवन है और चलता ही रहेगा
लोग भी हर मोड़पर मिलते रहेंगे
पर कुछ ऐसे भी मिलेंगे जिनका जिक्र बारबार होगा
नजर के सामने आते रहेंगे और आपको अनुकरण करना होगा।

नजर के सामने
Monday, June 12, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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नजर के सामने गरीब तो हो पर दिल की धनी हो मन की आमिर हो किसी कसबे की मीर हो। आईना जैसी साफ़ हो किसी के भी दिल का मेल साफ़ कर सकती हो अपने आपमे एक उझाला हो अँधेरे को मिटाने का जरिया हो। हुस्न का दरिया हो जीवन है और चलता ही रहेगा लोग भी हर मोड़पर मिलते रहेंगे पर कुछ ऐसे भी मिलेंगे जिनका जिक्र बारबार होगा नजर के सामने आते रहेंगे और आपको अनुकरण करना होगा।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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