भरोसे को Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

भरोसे को

भरोसे को

मिला क्या आपको?
जब आपने असत्य कहा सबको!
वो ही अंदाज़ और वोही अभिमान
पर क्या होगा जब होगा अपमान।

लोग समझते है
पर बोलते नहीं है
क्योंकि उनको भी कुछ लेने की आस है
इसीलिए आपके आसपास है।

हर कुत्ते की एक कीमत होती है
यह बहुत पुराणी अंग्रेजी कहावत है
जब तक उसे वो मिलती रहेगी
आपके पीछे वो घूमती रहेगी।

नहीं थी मेरी ऐसी आदत
पर पड गयी बुरी लत
लोग सहते गए
में बढ़ता गया।

जब होगा तब देखेंगे
अभी तो मौज उड़ाएंगे
लेकिन दिल मेरा साफ़ है
सब के लिए मेरा इन्साफ है।

नहीं चाहता में किसीका बुरा
पर हूँ हालात का मारा
इंसानिया का जज्बा पूरा भरा पड़ा है
मेंने भरोसे को कभी नहीं तोडा है।

भरोसे को
Friday, June 30, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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