किस रस्ते पर चल बैठे हम हरसू गहरी खाई है
चारों तरफ़ नफ़रत की आंधी काली घटाएं छाई है
कोई तो आए राह दिखाए ज़हरीली आंधी से बचाए
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ख़तरे में हर भाई है
किस रस्ते पर चल बैठे हम हरसू गहरी खाई है
कल तक दोस्त चचा और भाई गीत ख़ुशी के गाते थे
एक दूजे के बिना ना हरगिज़ एक पल भी रहपाते थे
ज़ात पात हो धर्म या भाषा बीच में कुछ ना लाते थे
सोच बदल दी बदला नज़रया ऐसी आग लगाई है
किस रस्ते पर चल बैठे हम हरसू गहरी खाई है
नहीं ये गीता ना क़ुरआन नहीं वह अल्लाह ना भगवान्
नहीं सिखाता मज़हब कोई किसी की लेलो लड़ कर जान
अमन प्यार का दुश्मन हरसू ज़हर फ़िज़ा में घोल रहा
ओछी सियासत धर्म ज़ात की चारों तरफ़ गरमाई है
किस रस्ते पर चल बैठे हम हरसू गहरी खाई है
By: नादिर हसनैन
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