खड्डे में गिराएगी Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

खड्डे में गिराएगी

खड्डे में गिराएगी

जिंदगी वोही
रफ़्तार वोही
फिर भी हम सोचते यूँही
सच्ची ख़ुशी ढूंढते ही नहीं।

भुख लगती है समयपर
कामपर जाना होता है वक्तपर
सब का समय है अपना अपना
हमने खुद तय करना है और शरू करना है सोचना।

कोई काम समय के पहले नहीं होता
हर कोई अपने दुखड़े नहीं रोता
सब अपने तरीके से हल ढूंढते है
खुश रेहनेकी कोशिश करते है।

यह एक अजब रीत है
ओर न्यारी प्रीत है
जिंदगी है एक पहेली
हमने बनानी है सहेली।

लाड लड़ाना हमारा काम है
यदि जीवन में कौशल और हाम है
हम जिए अपने तरीके से
बताये यह की हम कमजोर नहीं तकलीफों से।

हमें अनुभव है हर पल का
सुख के एहसास का और दुःख के आगमन का
हर पल हम सुखी रेह सकते है
किसी भी हाल में अपने आपको ढो सकते है।

हम मर नहीं जाएंगे
यदि कुछ कमी रह जाएगी
बस फिकरमंद तो तब होंगे जब जिंदगी कम पड जाएगी
होंसलाफजाहि के बजाय खड्डे में गिराएगी।

खड्डे में गिराएगी
Sunday, July 30, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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Nanda Parkash Aas Comments Nanda Parkash Aas Nanda Parkash Aas Thank ji Like Like Love Haha Wow Sad Angry · Reply · 1 · 1 hr

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हम मर नहीं जाएंगे यदि कुछ कमी रह जाएगी बस फिकरमंद तो तब होंगे जब जिंदगी कम पड जाएगी होंसलाफजाहि के बजाय खड्डे में गिराएगी।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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