हम आपकी अदा का कब. Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हम आपकी अदा का कब.

हम आपकी अदा का कब.तक इँतजार करें,
केवल आप चुप देखेंगे या खुद इजहार करें।।
आपके इरादे-वादे का तो हम यकीन करते,
कुछ मेरे भी कहने सुनेे का हम इश्तहा करें।।
नाज -नखरे का अनदेखा न किया अबतक।
आप रहमे-दिल से मुझे भी थोड़ा प्यार करें।।
हर लम्हे हम हुजूर का गिला-शिकवा सुनते।
आप भी चहल -कदमी करने में न इँकार करें।।
आप -हम दोनों ही एक दरख्त के दो डाल हैं।
'नवीन'दरख्वास्त मेरी, क्यों न आप अँकवार भरें!

Saturday, August 19, 2017
Topic(s) of this poem: love
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