द्वैत भ्रम
भारी भीड़ भरी दुनियां में
मैं खुद को ही ढूँढ रहा हूँ!
बिन आपणे, सब कुछ दीसे
'द्वैत' भरम में भटक रहा हूँ! ! !
भरम, भावना, भय भटकावे
स्वै-विस्तार समझ न आवे
काल चक्र आखेट बनावे
जन्म-मृत्यु मे चक्कर खावे! ! !
अपनी ही परछाइन्यों को मैं
कोई दूसरा समझ रहा हूँ
स्वै-ज्ञान के ही अभाव में
मैं खुद को ही नोच रहा हूँ! ! !
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