सखिय संग प्रियतम खैले, होली। Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

सखिय संग प्रियतम खैले, होली।

सखिय संग प्रियतम खैले, होली।
सखिन बजावत मंगल बाजा, झांझ मृदंग बजावत होली टोली।
कोउ सखि सितार डफ वीणा बजावत, कोउ बोल ‘जय सिया' बोली।
सब कर हाथ कंचन पिचकारी, विविध रंग अबीर दिए जल घोली।
गुलाल अबीर कुंकम केशर दधि, मिलि कीच बन्यो बरसो महारस होली।
प्रियतम प्रिया गुलाल लपेटत, सिया जू प्रियतम आनन रंग बोरी।
‘नवीन' प्रिया प्रियतम रंगपूरित, आनन निरखत छवि सुख रंग घोली।

Monday, October 2, 2017
Topic(s) of this poem: love
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