एक सरीखे Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

एक सरीखे

एक सरीखे

अपने ही विरोधी
ला देते है जीवन में आंधी
आप जीते जी ले लेंगे समाधी
पर नहीं रखेंगे कोई सम्बंधी।

रावण को मिला विभीषण
जिसने बताया कहाँ लगाना है बाण
बता दिया कहाँ से हो सकता है उसका अंत
तो याद रखो उसे जीवन पर्यंत।

अपने जैसा कोई सखा नहीं
खुद को बचाना पड़ता है यहीं
नहीं है कोई आपका
परछाई भी छोड़ेगी साथ और लगाएगी ठहाका।

ठीक है सब आपके मित्र है
पर है अलग से चित्र
आप भी नचिंत रहे
सब के सब है एक सरीखे।

एक सरीखे
Tuesday, October 3, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 03 October 2017

ठीक है सब आपके मित्र है पर है अलग से चित्र आप भी नचिंत रहे सब के सब है एक सरीखे।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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