कदम सार्वजनिक करे Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कदम सार्वजनिक करे

कदम सार्वजनिक करे

धूर्त कहो या शातिर
ये सब है पावर के खातिर
वो सब चाहते है सदा अशांति
हम सब जानते है इतिहास अत थी इति।

इनका बस चले तो देश को पूरा बेच डाले
जितना कमाना चाहे उतना कमाल
इनकी भूख सदा प्रज्वलित रहती है
सभी चीज को स्वाहा कर देती है।

इनको बोलने की कोई तमीज़ नहीं
जबान कभी नहीं बोलती सही
संसद को ये लोग चलने देते नहीं
वेतन और भत्ता पूरा लेकर डकारते यही।

अण्णाजी को समझना होगा
उनका आंदोलन शांतिमय होना
वरना ये उनका पूरा फ़ायदा उठाएँगे
पर अपने को तीसमारखाँ कहलाएँगे।

पहले उनको पूछो 'अपनी संपत्ति घोषित करे '
सेवा का जोर जोर से उद्घोष करे
भारतमाता की रक्षा के लिए उठाने का हर कदम सार्वजनिक करे
और अपने घोषणा पत्र में सब के सामने कहे।

Thursday, October 5, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 05 October 2017

1 Patiram Patel Comments Patiram Patel Patiram Patel बहुत ही खूबसूरत रचना Like Like Love Haha Wow Sad Angry · Reply · 1 · 4 mins

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Mehta Hasmukh Amathalal 05 October 2017

भारतमाता की रक्षा के लिए उठाने का हर कदम सार्वजनिक करे और अपने घोषणा पत्र में सब के सामने कहे।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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