करुणा के अवतार Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

करुणा के अवतार

करुणा के अवतार

Sunday, December 10,2017
9: 32 AM

करुणा के अवतार

प्रभुजी में पानी तुम चन्दन
करू में शत शत वंदन
मुझे चरणों में शरण दीजिए
मेरी छोटी सी भी गलती को भी माफ़ कीजिए।

आप हो दया के सागर
पार उतारो भवसागर
में हु तुच्छ प्राणी और लाचार
बहुत ही अशोभनीय वाणी और दयनीय शिष्टाचार।

में कैसे करू वर्णन
जब किये ही नहीं दिल से दर्शन
जब भी याद लिया अपने स्वार्थ को खातिर
मन से और कर्म से था में शातिर।

बहुत ही अनदेखी की
अपने दोस्तों की और कुटुंब के सदस्यों की
अपने ही जाल में लुभाया
और समय आनेपर धोखा भीदिया।

आज मेरा मन पसीज रहा
अपने आप पर घृणा कर खीज रहा
कैसे कर पाऊंगा मन से पश्याताप
ये ही हो रहा दिल से संताप।

में ये भी नहीं कह सकता "मेरे अवगुण चित ना धरो "
आप हो मेरे दाता "मुझे माफ़ करो"
चरणों में गिड़गिड़ाता हूँ अपने कर्मो के लिए
सजा चाहे वो दे दो मेरी मुक्ति के लिए

मेरे पास शब्दों का भण्डार नहीं
लेखनी है, पर उसमे श्याही नहीं
में नतमस्तक गुजारिश ही कर सकता हूँ
बस एक छोटी सी आशीष का प्रार्थी हूँ।

बस आया हूँ शरण तुम्हारी
सुन लो आज अरज हमारी
दिल से कर रहा हाथ जोड़ी जग किरतार
आप तो हो दयासागर और करुणा के अवतार।

COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 09 December 2017

में ये भी नहीं कह सकता मेरे अवगुण चित ना धरो आप हो मेरे दाता मुझे माफ़ करो चरणों में गिड़गिड़ाता हूँ अपने कर्मो के लिए सजा चाहे वो दे दो मेरी मुक्ति के लिए

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Mehta Hasmukh Amathaal

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