सर्व सनातन Poem by C. P. Sharma

सर्व सनातन

सर्व सनातन

पत्ते पत्ते में मै जी रहा हूँ
मौसम के संग संग ढला रहा हूँ
हर मौसम के रंग मै रंगा हूँ
पतझड़ की मस्ती में बह रहा हूँ

हर फूल का रंग गंध मुझ में
हवा के झोंकों में लहरा रहा हूँ
कभी बन गुलाब काँटों में रहता
बन कमल कीचड़ में खिल रहा हूँ

नीलाम्बर मेरा परिधान होगा
सरितायें होंगी मेरी धमनियाँ
चाँद सूरज बन धरा निहारूं
मुक्त पवन सा स्वयं विचारूं

अभी दृश्य हूँ मै
फिर अदृश्य हूँगा
दृश्य-अदृश्य बीच
सनातन हूँ मै

सर्व सनातन
Tuesday, December 12, 2017
Topic(s) of this poem: immortality
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C. P. Sharma

C. P. Sharma

Bissau, Rajasthan
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