क्यों सच बोले Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

क्यों सच बोले

क्यों सच बोले?

में हिन्दुस्तानी नागरीक हूँ
परजबां से मूक हूँ
मा यहाँ कुछ नही है
में आया तो जरूर हूँ पर जीवन मेरा नहीं है

मेरी बीबी गले में चेन पहनकरबाहर जा नहीं सकती
रेल में आसानी से सफर कर नहीं सकती
रेस्टोरेंट में शांति से खा नहीं सकती
सामान लेकर रिक्शा में सफर नहीं कर सकती।

कहने को बड़ी लोकशाही है
पर सबकुछ लिखा जाता है काली शाही से
वकील जो कहेगा वो ही सत्य है
सामान्य य्वक्ति ही सिर्फ त्यज्य है

बैंक से लेकर कोई भी संस्थान सुरक्षित नहीं है
जहा भी नजर करो वहां चूं का बसेरा है
होस्पीटल में जीवित को मुर्दा घोषित किया जाता है
आदमी की हैसियत नहीं फिरभी लाहों का बिल दिया जाता है।

"गरीबी को हमने हटाना है"
ये आह्वाहन बहुत पुराना है
उन्हों ने गरीब को हटा दिया है
अब देनेके लिए नया कुछ भी नहीं है

हम भी भश्टाचार के हामी है
जानते है इसमें बदनामी है
पर बिना पैसे दिए कुछ काम नही होता है
जो भष्टाचारी है वो हमार में ही तो आते है।

हम किस किस को बदनाम करे
बस गुमनामी को पसंद करे
शांति से जीए और पंगा ना ले
ये हमारा देश है फिर क्यों सच बोले?

COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 29 December 2017

welcome hitesh nanda 1 Manage Like · Reply · 1m

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success