जीना तो है Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जीना तो है

जीना तोहै

Sunday 31,2017


जमाने ने हमें भुला दीया
में देखकर खूब रोया
बहुत पछताया
फिर भुख से तड़प कर सो गया।

जो कोई भी मिलता
मेरा हाथ ऊपर को उठ जाता
में उसे दुआ दे देता
फिर भी वो अपना दुखड़ा रोता।

में मेरा दर्द भूल जाता
में निर्धन जरूर था
भूखा, प्यासा भी रह जाता था
पर बददुआ नहीं देता था।

भगवान् ने शायद मेरा इम्तेहान लेनेकी सोचा
मैंने फिर भी उन्हें नहीं कोसा
यदि यही मेरा भाग्य है
तो यह भी सुनहरासौभाग्य है।

कोई कुछ खाने को देगा
तो आशीर्वाद तो जरूर मिलेगा
पर में अपने को माफ़ नहीं कर पाउँगा
जन्नत तो नसीब नहीं कर पाउँगा।

मेरा हाथ दुआ मांगने के लिए है
किसी को कोसने के लिए नहीं है
उसीकी बनायी दुनिया में तो जो रहा हूँ
आँखों में संतुष्टि है और दूसरों को मरहम लगा रहा हूँ।

वाह रे दुनिया के लोग इतना भी गुमान ना करो
जो पास है, उस से ही अपना गुजारा करो
मेरा हाल देख रहे होना!
जीना तोहै ही जीना।

Courtesy: - Pakeeza Rizvi

जीना तो है
Saturday, December 30, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 30 December 2017

वाह रे दुनिया के लोग इतना भी गुमान ना करो जो पास है, उस से ही अपना गुजारा करो मेरा हाल देख रहे होना! जीना तोहै ही जीना।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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