अभी रो कर आंसुओं में बहा दिया
अब, चेहरा धो कर, पानी में बहा दूंगी
फ़िर, देखूंगी खुद को आईने में
मुस्कुराऊँगी..
अपनी साँसों को महसूस करुँगी...
अपनी रौशनी को महसूस करुँगी...
उसकी किरण का एहसास करुँगी...
फ़िर मुस्कुराऊँगी...
फ़िर, जगमगाऊँगी...
फ़िर, साँसों में थोड़ी ज़िन्दगी भर कर,
फ़िरसे, जीने की कोशिश करुँगी...
फ़िर, जियूँगी...
फ़िर मुस्कुराऊँगी...
जगमगाऊँगी.....
- फ़िर मुस्कुराऊँगी
(रश्मि स्वर्णिका)
गिर कर फिर संभलने की कोशिश, खोकर फिर पाने की कोशिश का नाम ही ज़िन्दगी है. जीने की इस कला को समर्पित आपकी कविता अत्यंत प्रभावशाली है. धन्यवाद, रश्मि जी.
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