Rashmi Singh

Rashmi Singh Poems

आज फिर हार गए हम इम्तिहान-ए-ज़िन्दग़ी में,
आपको नहींमालूम जो, ऐसे काफ़ी हैं फ़साने ज़िन्दग़ी में।
वैसे तो जीने के लिए एक नहीं, हैं कई बहाने ज़िन्दग़ी में।
लेकिन नाजाने क्यों गुमसुम से हैं तराने ज़िन्दग़ी में।
...

अभी रो कर आंसुओं में बहा दिया
अब, चेहरा धो कर, पानी में बहा दूंगी
फ़िर, देखूंगी खुद को आईने में
मुस्कुराऊँगी..
...

Start afresh.
Breathe.
Take a new breath.
A fresh one.
...

To feel or not to feel...

Yeah..as if it's in my hand
...

The world looks like a canvas
Full of fake colors.

'tis not one whole world.
...

The Best Poem Of Rashmi Singh

इम्तिहान-ए-ज़िन्दग़ी

आज फिर हार गए हम इम्तिहान-ए-ज़िन्दग़ी में,
आपको नहींमालूम जो, ऐसे काफ़ी हैं फ़साने ज़िन्दग़ी में।
वैसे तो जीने के लिए एक नहीं, हैं कई बहाने ज़िन्दग़ी में।
लेकिन नाजाने क्यों गुमसुम से हैं तराने ज़िन्दग़ी में।
आज फिर हार गए हम इम्तिहान-ए-ज़िन्दग़ी में।

ख़ुदा की ख़ुदाई भी रुसवा हुई यूँ,
कि भूल ही बैठे हम
ख़ुद के अफ़साने ज़िन्दग़ी में।
ख़ुशी का मुखौटा पहने दस्तक हैं देते,
कितने ही गम नाजाने ज़िन्दग़ी में
आज फिर हार गए हम इम्तिहान-ए-ज़िन्दग़ी में।

सुनना चाहें अगर आप तो कहें,
फुर्सत से कभी सुनाएँगे,
कि कम नहीं हैं फ़साने ज़िन्दग़ी में।
अभी भी है कुछ ज़िन्दग़ी बची,
अभी भी हैं कुछ शौक आज़माने ज़िन्दग़ी में ।

ये तो जंग है हर दिन की, हर पल की।
इस जंग के घाव और दर्द के राज़
एक मुस्कान से हैं छुपाने ज़िन्दग़ी में।
हर पल हर दिन की इस जंग से दूर,
हमने फिर भी हैं कुछ रंग डाले ज़िन्दग़ीमें ।
हम हैं वो, जो हार कर भी कभी हार ना मानें ज़िन्दग़ी में ।

इंतिहा तो कबके हो हीचुकी,
बसकिसी तरह से कोशिशें करके,
खुदको अब तक हैं सम्भाले ज़िन्दग़ी में।
इंतज़ार है उस दिन का जब ये ना कहना पड़े.....

कि आज फिर हार गए हम इम्तिहान-ए-ज़िन्दग़ी में।

-रश्मि स्वर्णिका

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