इस सन्नाटे में भी एक आहट सी आती है,
ये ख़ामोशी भी हमसे कुछ कह गुज़र जाती है|
न जाने दिल में क्यूँ एक हूक़ सी उठ जाती है,
जब एक आवाज़ रात की निस्तब्धता को चीर जाती है|
ख्यालों की उड़ान में विचरण करता तेरा मन,
सहसा, सपने होते चूर, धरती पर जा गिरता है|
धरशील ह्रदय को अपने संभाल तू मानव,
न करने दे आशा उसकी, जो हो न सके हासिल|
रात की निस्तब्धता को पहचान तू मानव,
कान खड़े कर तू सुन रजनी की वाणी शीतल|
क्योंकि...
इस सन्नाटे में भी एक आहट सी आती है,
ये ख़ामोशी भी हमसे कुछ कह गुज़र जाती है|
ह्रदय को अपने तू खोल मानव, सुन स्वर-तरंग तू उस अदृश्श्य की|
अनकही उन बातों को सुन...अनकही उन ख्यालों को सुन|
ख़ामोशी की उस गहराई को नाप तू,
छिपा है जिसमे सार जीवन का|
बीते हारों को भुलाकर तू,
भर नयी उड़ान जीत की|
भागती दौड़ती इस जीवन से,
निकाल तू दो पल शान्ति की|
कर दो बातें तू खुदसे ही, क्योंकि...
इस सन्नाटे में भी एक आहट सी आती है,
ये ख़ामोशी भी हमसे कुछ कह गुज़र जाती है|
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