मैं मगज़दारी से कोह सो दूर नफ़र।
मैं हूँ मेडीमेरा न कोई क़ुसूर नफ़र।
हँसते हँसते राह-ए-हक़ पे चलते हैं
ख़ुदाई दिल में, ख़ुदा से बेज़ूर नफ़र।
दीन-दुनिया और नस्लों की बात बहुत
आदमज़ात ज़ार-ज़ार चूरचूर नफ़र।
काश्ते-नफ़रत सहरा में भी ख़ूब पली
दरीग़ इश्क़ कहाँ, है आदमख़ूर नफ़र।
तपिश चौतरफ़ राहत मिले तो कहाँ
बाराने इश्क़ कहाँ, कहाँ अब्रे नूर नफ़र।
क़िस्सा-ए-आहू चश्म छिड़ता बारहा
दिलदार क़िस्सागोई में मख़मूर नफ़र।
अंदर की बात बता ए बीख़बर ख़ुशदिल
बेहिस बेपरवाह या कैफ़ओसुरूर नफ़र।
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बहुत खूब रचना परसि में. नफर को सीखना ज़रूरी है हर राह पे और हर मोड़ में. धन्यवाद्.
I'm really thankful to you, Mam for your feedback. But there is a problem with the new PH format. The comment section doesn't support The Nāgri font or like. Please could you transliterate your comment in Roman. Thank you.