प्यार का Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

प्यार का

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प्यार का

बुधवार, ३१ मई २०१८

कहने को कुछ नही बचा
मेरा सर हो गया नीचा
जैसे मेरे को किसीने खींचा
और नुकीले नाखुनो से नोचा।

शिकायत करने को नहीं चाहा
पर मन से निकला "आहा"
सबकुछ हो गया था स्वाहा
बस में रह गयी तन्हा।

पहले दौड के आते थे
समय से पहले दस्तक देते थे
मेरे गुणगान करते नहीं थकते थे
मानों फुलो मे खुश्बु का अभाव था।

सुरज की किरणों के साथ सब चिजो का विलय हो गया
आसमान एकदम साफ़ दिखने लगा
हरचीज का एक मौक़ा होता है
कोई परस्त हो जाता, कोई जीत जाता है।

पर आप उखड़े उखड़े नजर आने लगे है
पहले वक्त से पहले पहुंचते थे. आज देरी से पदार्पण करते है
नजरे जमीं पर गड़ाए कोई बहाना ढूंढते है
रोती सी सुरत बनाए, अपने को हालत का शिकार बताते है।

प्यार करने वालों की तासीर अलग होती है
उनकी आंखो मे सच्चाई की चमक भिन्नं होती है
वो अपमी बात ब्यान करते करते रुकते नहीं
प्यार का एजहार करते करते थकते नहीं।

हसमुख अमथालाल मेहता

प्यार का
Thursday, May 31, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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S.r. Chandrslekha Wonderful! 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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