अनुराग और अनुकंपा Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अनुराग और अनुकंपा

अनुराग और अनुकंपा

रविवार, २९ जुलाई २०१८

जीवन मिलना ही प्रभु की उच्चतम देन है
मनुष्य जीवन पाना इतना आसान काम नहीं है
और इसमें भी उच्च कुल में अवतार लेना एक भाग्यही है
समज में ये बात आ जाय तो मनुष्य जीवन सफल है।

कहते है मनुष्य की जात मत पूछो
हो सके तो उसके आंसू पोछो
उसके दुखदर्द को समजो
अपनी करुणामय वाणी-वर्तन से सुलजो।

उच्च अवतार धारण करना ही काफी नहीं
जब तक उसमे रही पहेलियों को समजो नहीं
समाज में रह्कर अपनी फर्ज निभना पहला कर्तव्य है
पर साथ में धर्म से जुड़ा दुसरा दायित्व भी है।

धन उपार्जन निश्चित करो
कुटुंब का निर्वाह भी सनिष्ठा से करो
साथ में धर्म का निर्वहन भी करो
अपने कर्मो को धुलना का कार्य भी साथ साथ करो।

सिर्फ उच्च कुल बताने से काम नहीं चलेगा
आपको सही दिशा लेकर कर्मठ भी बनना पडेगा
धर्म का आधार ही अहिंसा है
मन में कनिष्ठ विचार भी हिंसा ही है।

"स्वर्ग या मोक्ष"जिसका आप बारबार जिक्र करते हो
वो एक नरी कल्पना हो सकती है
पर सतकर्म करने से परलोक जरूर सुधर सकता है
आपकी आत्मा को सुकून जरूर मिल सकता है।

मुझे नहीं मालुम सत्य क्या है?
मैंने पढ़ा है, और वीतराग प्रभु से सूना है
जिन वो ही है जिसके दिल में करुणा है
दया का सागर है और अपनों के प्रति स्नेह है

यदि यह नहीं तो धर्म का संस्थापन कैसे होगा
खाली प्रवचन सुन ने से कुछ नहीं होगा।
जैसे भोजन बिना भूखे का पेट नहीं भरता
ठीक वैसे हीअनुराग और अनुकंपा के बिना जीवन का फल नहीं मिलता।

हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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