करूँ अरदास या करू शिकायत समझ न आये ये मुझको
समझ ना पाऊं लीला तेरी क्यों अड़चन दे तू जीवन को
तू कहलाये योगीश्वर और तू कहलाये लीलाधर पर
समझ न पाऊं जब तू है लीला धर तब कैसे बन जाये योगेश्वर
कभी बताये बातें ज्ञान की तो, कभी तू देह को नश्वर कहता जाये
टिकाऊ न थी जब दुनिया तो फिर क्यूँ इसमें नित नए जीवन तू दे जाये
हे इश्वर कहाँ मिलेगा तू आकर क्यूँ इतना तू न बतलाये
मनकी लेकर जलन ज्वाला ये इन्सान, हे इश्वर कैसे तुझे वो पाए.
फिरसे ले ली न तूने तेरे संग चलने की मंज़िल
फिरसे पथिक क्यों अकेला पड़ जाये
तेरी गुथ्थी तूही जानें इनसे बचकर कोई
निकल न पाए
एक तरफ देता उपदेश गीता में प्रभु तू दूजे तू मानव मन को धन, मोह माया के लम्बे जाल में फसाये
कभी बनाये बिगड़ी तू तो कहीं बनी बात ही बिगड़ भी जाये
आज मैं सोचूं तुझ ढिग बैठ बैठ क्यों ऐसे सब तू प्रपंच रचाये
कर्म कर कह तू कहे मानव से फल की इच्छा न कर पर
वो कर्म भी तो तू उससे ही करवाए। सोच सोच हारी अब मैं तो
तेरी गहन बातें मेरी समझ न आये
बहुत सुन्दर कविता. यहाँ भक्त अपने भगवान के सामने अपने मन की सारी दुविधा रखना चाहता है और साथ ही अपने प्रश्नों के उत्तर भी उससे जानने का आग्रह करता है. एक सुझाव है कि कई स्थान पर शब्द एक दूसरे से चिपक गए हैं. कृपया इन्हें एडिट कर के ठीक कर लें ताकि पढ़ने में परेशानी न हो. बहुत बहुत धन्यवाद बहन पुष्पा जी.
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sabse pahle mafi chahti hu bhai late reply ke liye. is kavita par aapne sundar vichar rakhne iske liye tahe dil se aapki abhaari hun. aapke comments mere lekhan ko sada hi nai disha dete aaye hain . bahut bahut dhanywad bhai . ji jarur meri koshish rahegi ki mere pathakon ko meri kavita padhane me koi dikkat na ho. mai avashya hi aapke sudhav par jald hi amal karungi. dhanywad bhai..