मा Poem by Tabish Raza

मा

पता ना पूछना मेरे घर का
मेरी मां नहीं है
मै रहता हूं खयालों में अब
के मुर्दों को भी मौत नहीं है

मै गुनाह करता हूं कोई खौफ नहीं है
गुस्से से घूरती आंखे जो याद नहीं है
रोता नहीं इसलिए भी मै
दफ़न सिर कर दूं ऐसी कोई गोद नहीं है

फ़ेहरिस्त लम्बी है यारो की बहुत
रिश्तेदार भी है बस साथ नहीं है
के ख़ैर है, ख़ुदा है, ख़ुशी है, खज़ाना भी है
सब है
मा सच केहता हूं, कोई बात नहीं है

हर गलत बात पे लड़ जाया करती थी मा
क्यों मुझमें कुछ वैसा ज़मीर नहीं है
वो केहती थी मेरे हर शौक पूरे कर के ताबिश
तू बेटा किसान का है अमीर नहीं है

वास्ते मा के क्यों दो रकात नहीं है
अदा कर सको ज़कात नहीं है
चुकाने की सोचूं या कर्ज़ केहदू ममता को
मां इतनी मेरी औकात नहीं है।

Wednesday, July 29, 2020
Topic(s) of this poem: mother
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Tabish Raza

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