हम धरती से जन्म लिए, धरती में पले, धरती ही मेरी प्राण है। Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हम धरती से जन्म लिए, धरती में पले, धरती ही मेरी प्राण है।

हम धरती से जन्म लिए, धरती में पले, धरती ही मेरी प्राण है।
धरती पर ही खेलते-कूदते, धरती पर जीते, धरती ही मेरी शान है।।

धरती का रँग हमको प्यारा, धरती के रँग में हम भी रँगें,
जब धरती को कोई आँख दिखाये, मेरे भी नयन कोर क्रूर बने,
हम छिप जाते अपनी धरती के रँग में दुश्मन धोखा खा जाता है,
वीर बन दुश्मनों पर कहर ढा देते, रहती बस धरती की आन है।।

जब-जब पड़ी धरती पर विपदा, हमने चैन की नींद न सोयी है,
धरती माँ को अपने अँक अन्दर छिपाया, धरती कभी न रोई है,
दिन हो या रात, हमेशा जाग -जाग, प्राण सम जुगोई है,
अपने दुश्मनों को धोखा देने लिए, धरती आवरण मेरी पहचान है।

धरती के हम, हम धरती के लिए, धरती से हमारा नाता है,
अपना देश, अपनी धरती, अपनी भाषा, बस यही मेरी माता है,
इसके सिवा अपने जीवन में कुछ न सुहाना नजर आता है,
अपनी धरती की मिट्टी पर मर जाना, "नवीन" जीवन अरमान है।

Tuesday, December 25, 2018
Topic(s) of this poem: love
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