चुपचाप रह नहीं सकते ये बादल;
पहेलियों का जाल बिछा कर रखता है
पेड़ और डालियों पर; सिलोलाइड पर
फंसा हुआ जैसे रिलवांग …
शबनम, धूप और बारिश का
आना-जाना लगा रहता है इस घर पर;
पास से भी निकला
तुम्हारे चलने का रास्ता!
तुम तो तुम्हीं हो जिसका नाम लेते ही
पहाड़ के आंचल पर बारिश गिरने लगता;
और बारिश रुकते ही पाइन-डालियों पर
सुख- लावण्य दिखाई देता;
दूरी पर खो गया टेड़ा मेड़ा रास्ता
और हेयर-पिन- बेंड; शीत-चादर उड़कर
बैठी हूँ मैं- एक पहाड़ी कन्या
सामने है धूसर आसमान
सिर्फ़ मेरा…
Translated: 30th Dec 2020.
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