गर्मियों की बारिश से पहले Poem by neetta porwal

गर्मियों की बारिश से पहले

कभी-कभी
तुम्हें भनक भी नही होती
और तुम्हारे चारों ओर फैली हरीतिमा
गायब हो जाती है अचानक
जबकि तुम्हें तो वह
महसूस हो रही थी
नीम ख़ामोशी के साथ
बढ़ती हुई खिड़की पर

यकायक नज़दीक जंगल से
सुनाई देती है उसके टूटने की आवाज़
उस एक आवाज़ को सुन
भर उठते हो तुम अकेलेपन और आवेश से
और तब मानो कोई तुम्हें
दिला जाता है याद सन्त जीरोम की,
जिनकी करुण पुकार सुनते ही
झमाझम हो उठती थीं बारिशें

दीवारें प्राचीन तस्वीरों के साथ
बहुत आहिस्ते
हमसे दूर सरकती मालूम होती हैं,
जबकि हकीक़त यह है
कि वे नहीं सुन पाती हमारी बातें

प्रतिबिम्बित हो उठती है
उड़े रंग वाले चित्रपट पर
बचपन के उन उदास लम्बे दिनों की
सिहरती कम्पित रोशनी,
जब तुम रहा करते थे बहुत भयभीत!
अंग्रेजी से अनुवाद: neetta porwal

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